✍️✍️ कचहरी चुनाव:रोचक तथ्य की कितनी सच्चाई?


👉 इस लेख का उद्देश किसी को ठेस पहुंचाना नहीं है,लेकिन समाज की वास्तविकता को जानना भी जरूरी है

कचहरी चुनाव वाराणसी: उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जिले में बार का वार्षिक चुनाव सम्पन्न किया जाता रहा है। जहा पर हर एक पद पर अधिकतम प्रत्याशी अपने भाग्य को आजमाते है। बात पूरी फैक्ट है पर कुछ लोगो को बुरा व नागवार भी लग सकता है। चुनाव प्रचार में प्रत्याशी अधिवक्ता हित में बहुत सी बाते करते है और अपने मेनोफेस्टो में तमाम बातों का जिक्र करते है जो जीत जानें के बाद वो करेंगे।

👉 चुनाव के पूर्व किसी भी अधिवक्ता को कोई परेशानी आती है तो जानकारी होने पर प्रत्याशीयो द्वारा उक्त स्थान पर मदद कर पीड़ित के साथ खड़े होकर फोटोशूट करके डाल दी जाती है। चुनाव होने के पूर्व प्रत्याशी अपने वोटर को अच्छी तरह से जानता और पहचानता है, मेल मिलाप रहता है, चेहरे से लेकर नाम तक याद रहता है। ये सब चुनाव होने के पूर्व तक ही सीमित रहते हैं।

👉जैसे ही चुनाव होते है परिणाम घोषित किए जाते है। जितने वाले प्रत्यासी का रवैया कुछ को छोड़कर चेंज होने लगता हैं। जितने वाला प्रत्यासी अब तो पीड़ित अधिवक्ता के लिए पहले की तरह स्पॉट पर भी नही जाते। जब किसी आम अधिवक्ता का कुछ मामला होता है तो उस समय उस अधिवक्ता का चेहरा और नाम जीते हुए प्रत्यासी के लिए या तो नया हो जाता है या तो फिर उसकी सदस्यता चेक करायी जाती है। यदि सब कुछ ठिक रहा तो मोबाइल है न उसी से काम हो जाता है, काम न होने पर अधिकारी के पास जाकर मिलना उचित नही समझते, कहते है न जिसके पीछे लस्कर होता है जमाना उसके पीछे।

👉अधिवक्ता हित की बात करने वाले ही, अपने लोगो के बीच के लोगो की खिल्ली उड़ाने में भी संकोच नहीं करते। यदि बात की जाए तो जीते हुए सभी पदाधिकारियों का रवैया जैसा भी हो,व्यवहार पूर्व की तरह नही रह जाता, जिस तरह चुनाव जीतने के पूर्व का था। 

👉अध्यक्ष पद से बड़ा कोई पद नही होता है, इसलिए अध्यक्ष पद को छोड़कर बाकी बचे हुए पद के पदाधिकारियों का व्यवहार भले ही बदला हो लेकिन वही पदाधिकारी जब आगामी कुछ वर्षो बाद चुनाव पुनः बड़े पद पर लड़ता है तो उसका रवैया पुनः नम्रतापूर्वक देखने को मिलता है। अब आप इसको मानव प्रवृत्ति समझिए या चुनावी मंत्र।

यही हाल लगभग सभी बार के पदाधिकारियों का है, कुछ को छोड़कर......





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