✍️✍️ शीर्षक: "अधकचरे ज्ञान का ज़माना: जब हर कोई गुरु बन बैठा"


✍️✍️ लेख: (अंकुर पटेल)

👉 आज का युग सूचना का है, लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि सूचना और ज्ञान को लोग एक ही चीज़ समझ बैठे हैं। इंटरनेट ने हर हाथ में एक मोबाइल और हर दिमाग में एक मंच दे दिया है। अब जो कल तक "दिमागदार" कहलाते थे, उन्हें अगर और दिमाग दे दिया जाए, तो क्या होगा? जवाब है – विनाशकारी आत्मविश्वास।

👉 जब किसी के पास थोड़ी-सी जानकारी होती है और वह उसे सम्पूर्ण सत्य मान बैठता है, तो उसका नुकसान केवल उसे नहीं, समाज को भी होता है। फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म्स ने बहुत कुछ अच्छा भी किया है, लेकिन इसके साथ एक बड़ा खतरा भी जोड़ा – "अधपका ज्ञान, पका-पकाया विश्वास"।

👉 अब हर कोई डॉक्टर है, बिना डिग्री के। हर कोई वकील है, बिना कानून पढ़े। और हर कोई जीवन का गुरु है, बिना जीवन को समझे। सुबह कोई दो वीडियो देखकर आयुर्वेदाचार्य बन जाता है, तो शाम होते-होते कोई विज्ञान का विशेषज्ञ।


समस्या कहाँ है?

👉 असल में, पढ़ना बुरा नहीं है। सोशल मीडिया पर सीखना भी बुरा नहीं है। लेकिन जब कोई व्यक्ति "सीखा हुआ" और "समझा हुआ" में फर्क नहीं कर पाता, तब असली संकट शुरू होता है। आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर सलाह देना, लोगों को गुमराह करना और खुद को ज्ञानी समझना – यही अधकचरे ज्ञान का सबसे बड़ा खतरा है।

👉 ""दिमागदार को और दिमाग देना, उस तलवार को तेज़ करने जैसा है जिसे चलाना नहीं आता""

👉 आज ज़रूरत है विवेक की, विनम्रता की और सबसे ज्यादा, यह समझने की कि ज्ञान किताबों, डिग्रियों या वीडियो से नहीं, अनुभव, प्रयोग और विनम्र जिज्ञासा से आता है।

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निष्कर्ष:

जब हर कोई शिक्षक बन जाए और शिष्य बनना छोड़ दे, तो समाज में भ्रम फैलता है, विकास नहीं। हमें यह समझना होगा कि ज्ञान बांटने से पहले उसे समझना और जीना ज़रूरी है। वरना हम भी उसी भीड़ का हिस्सा बन जाएंगे, जो शोर तो बहुत मचाती है, पर दिशा नहीं देती।

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