✍️✍️ "Corruption and dominance in Varanasi tehsil, attack on an advocate becomes a subject of headlines"

वाराणसी तहसील में भ्रष्टाचार और दबदबा, अधिवक्ता पर हमला बना सुर्ख़ियों का विषय


अधिवक्ता ने दर्ज कराई तहरीर

वाराणसी:

अधिवक्ता राजनाथ यादव ने थाना शिवपुर में तहरीर देकर गंभीर आरोप लगाए हैं कि सदर तहसील स्थित फूलवरिया कानूनगो कार्यालय में नामांतरण रिपोर्ट के संबंध में जानकारी लेने गए तो लेखपाल शिव श्याम ने उनसे 500 रुपए की रिश्वत मांगी। मना करने पर शिव श्याम और उनके साथ मौजूद 2-3 लोगों ने अधिवक्ता को धक्का देकर कमरे से बाहर कर दिया।

👉 इसके बाद, आरोप है कि लेखपाल कुंदन सिंह ने अन्य 4-5 लेखपालों के साथ मिलकर अधिवक्ता पर लाठी-डंडों से हमला किया और पिस्टल निकालकर जान से मारने की धमकी दी। इसी दौरान अधिवक्ता की जेब से 10,000 रुपए और आवश्यक दस्तावेज भी छीन लिए गए।

👉 थाना शिवपुर पुलिस ने अधिवक्ता की तहरीर पर बीएनएस की धारा 191(2), 115(2), 351(2) और 304(2) में मुकदमा दर्ज कर लिया है।


लेखपालों का पलटवार – अधिवक्ता पर लगाया आरोप

👉 घटना के कुछ ही घंटे बाद,रात में लेखपाल कुंदन सिंह और अन्य कर्मचारियों ने भी अधिवक्ता के खिलाफ तहरीर दी। हालांकि अब तक अधिवक्ता पर कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई है।

👉 मीडिया के जरिए जब अधिवक्ताओं को इस तहरीर की जानकारी हुई तो बड़ी संख्या में अधिवक्ता सीपी कार्यालय पहुँचकर विरोध जताने लगे और निष्पक्ष जांच की मांग की।

कुंदन सिंह पर लगातार विवादों के आरोप

👉 इस पूरे घटनाक्रम में सबसे अधिक नाम लेखपाल कुंदन सिंह का ही सामने आ रहा है। सूत्रों के मुताबिक, यह पहला मौका नहीं है जब कुंदन सिंह विवादों में रहे हों।

✍️ कुछ वर्ष पूर्व सेंट्रल बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष से मोबाइल पर अशोभनीय भाषा प्रयोग करने का मामला सुर्खियों में आया था।

✍️ सूत्रों से हाल ही में भी कई शिकायतें अधिकारियों तक पहुंचीं, लेकिन उन पर कोई ठोस विभागीय कार्यवाही नहीं हुई।

✍️अधिकारियों के “चहेते” कहे जाने वाले कुंदन सिंह बार-बार आरोपों के बावजूद सुरक्षित और पदस्थ बने रहे।

निलंबन और अटैचमेंट? अधिकारियों की भूमिका पर सवाल

👉 अधिवक्ता पर हमले के बाद, नितिन सिंह ज्वाईंट मजिस्ट्रेट /उप जिलाधिकारी-सदर वाराणसी से मुलाकात करने गए अधिवक्ताओं ने आरोपियों के निलंबन की मांग की। नितिन सिंह ज्वाईंट मजिस्ट्रेट /उप जिलाधिकारी-सदर वाराणसी ने मौखिक रूप से निलंबन का आश्वासन दिया भी और कहा निलंबन टाइप कर दिया गया। सूत्रों का दावा है कि वास्तव में कुंदन सिंह को  भूलेख तहसील अटैच किया गया है।

👉 महामंत्री द्वारा जब लिखित प्रति मांगी गई तो नितिन सिंह ज्वाईंट मजिस्ट्रेट /उप जिलाधिकारी-सदर वाराणसी ने देने से इनकार कर दिया। इससे साफ होता है कि मामले में प्रशासनिक पारदर्शिता का अभाव है और सवाल यह भी कि आखिर कुंदन सिंह जैसे विवादित लेखपाल पर कठोर कार्यवाही क्यों नहीं होती।

तहसील में भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें

यह मामला एक बार फिर सदर तहसील वाराणसी में फैले भ्रष्टाचार को उजागर करता है।

👉 नामांतरण, दाखिल-खारिज, खतौनी सुधार, नक्शा सत्यापन जैसे कार्यों में बिना “गुप्त भुगतान” के कोई भी फाइल आगे नहीं बढ़ती।

👉 वसूली का खेल इतना गहरा है कि आम जनता वर्षों तक अपनी जमीन के कागज सही कराने में तहसील के चक्कर काटती रहती है।

👉 50-60 हजार वेतन पाने वाले कई अधिकारी और कर्मचारी लाखों-करोड़ों की संपत्तियों के मालिक बन चुके हैं, जिसकी जांच हो तो बड़े-बड़े खुलासे हो सकते हैं।

अधिवक्ताओं का आक्रोश और जनता का सवाल

👉 अधिवक्ता समाज इस हमले से आक्रोशित है और दोषी कर्मचारियों के निलंबन व निष्पक्ष जांच की मांग पर अड़ा हुआ है।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि –

✍️आखिर तहसील में भ्रष्टाचार की यह जड़ें किसके संरक्षण में फल-फूल रही हैं?

✍️ क्यों हर बार शिकायतों के बावजूद विवादित कर्मचारियों को बचा लिया जाता है?

✍️ कब तक आम जनता और अधिवक्ता समाज इस भ्रष्टाचार और दबदबे का शिकार होता रहेगा?

👉 यह मामला केवल अधिवक्ता बनाम लेखपाल का नहीं है, बल्कि सदर तहसील में व्याप्त भ्रष्टाचार की गहराई का आईना है।

भ्रष्टाचार की सीमा किस हद तक की देनी पड़ी जान

बता दें कि अभी कुछ दिनों पहले सिस्टम से परेशान होकर पुजारी ने खुद को लगाई थीं आग!, मरने से पहले बोले- मर जाएंगे तब कुछ होगा?

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