✍️✍️ 28 साल पुराने, हत्या के प्रयास के मामले में आरोपी दोषमुक्त
विशेष न्यायालय गैंगस्टर एक्ट के न्यायाधीश सुशील कुमार खरवार ने एक लंबे समय से लंबित आपराधिक मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए आरोपी कल्लू सिंह उर्फ त्रिभुवन सिंह को दोषमुक्त कर दिया।
👉 यह मामला वर्ष 1997 का है, जिसमें हत्या के प्रयास (IPC धारा 307) का आरोप था। अदालत ने सबूतों की कमी और गवाहों के बयानों में विरोधाभास को आधार बनाते हुए आरोपी को संदेह का लाभ दिया। बचाव पक्ष की मजबूत पैरवी और अभियोजन पक्ष की कमजोर साक्ष्यों ने फैसले को प्रभावित किया।
👉 मामले की पृष्ठभूमि वर्ष 1997 की है, जब थाना लंका क्षेत्र में एक गोलीबारी की घटना घटी थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार, वादी माया राम उर्फ मयालू ने थाना लंका में तहरीर देकर शिकायत दर्ज कराई थी कि वह और उसका साथी हीरालाल साइकिल से गुड़ खरीदकर लौट रहे थे। शाम करीब 7:15 बजे गंगाराम क्लिनिक, नैपुरा कला के पास तीन अज्ञात व्यक्ति मोटरसाइकिल पर सवार होकर आए और जान से मारने की नीयत से फायरिंग की। इस दौरान एक गोली मयालू की बायीं जांघ में लगी, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया। वादी ने हमलावरों में से केवल दयाराम उर्फ गोले को पहचाना, जबकि अंधेरे के कारण बाकी दो की पहचान नहीं हो सकी। इस आधार पर थाना लंका में मुकदमा संख्या 58ए/1997 दर्ज किया गया, जिसमें धारा 307 आईपीसी के तहत बलेंदर सिंह उर्फ बल्ला और कल्लू सिंह उर्फ त्रिभुवन सिंह को आरोपी बनाया गया।
👉 विवेचना के दौरान पुलिस ने साक्ष्यों के आधार पर दोनों आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया। विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, वाराणसी ने 15 सितंबर 1998 को संज्ञान लिया और मामले को सत्र न्यायालय को सौंप दिया। 27 जून 2025 को इसे सत्र परीक्षण संख्या 565/2025 के रूप में दर्ज किया गया। 30 जुलाई 2025 को कल्लू सिंह के खिलाफ धारा 307 के तहत आरोप विरचित किए गए, लेकिन आरोपी ने आरोपों से इनकार कर परीक्षण की मांग की। अदालत में सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने तीन गवाहों को पेश किया।
👉 न्यायाधीश सुशील कुमार खरवार ने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में पूरी तरह असफल रहा। गवाहों के बयानों से आरोपी की संलिप्तता सिद्ध नहीं होती। इसके अलावा, विवेचना में कोई आग्नेयास्त्र या खोखा कारतूस बरामद नहीं किया गया, जबकि रिपोर्ट में कई गोलियां चलने का उल्लेख है। अदालत ने धारा 313 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत आरोपी का बयान भी दर्ज किया, जिसमें कल्लू सिंह ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि मामला गलत फहमी का नतीजा है और उन्हें फंसाया गया।
""बचाव पक्ष की ओर से वरिष्ठ फौजदारी अधिवक्ता शशिकांत राय उर्फ चुन्ना राय, बिपिन शर्मा और बृजेश कुमार सिंह ने पैरवी की""
जबकि अभियोजन पक्ष की ओर से सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) ने तर्क रखे। अदालत ने दोनों पक्षों के तर्क सुनने और पत्रावली के परीक्षण के बाद फैसला सुनाया।
👉 फैसले में कहा गया कि कल्लू सिंह उर्फ त्रिभुवन सिंह, पुत्र स्वर्गीय सिद्ध नारायण सिंह, निवासी ग्राम भगौतीपुर, थाना लंका, चितईपुर, वाराणसी को धारा 307 आईपीसी के आरोप से दोषमुक्त किया जाता है।

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