जेलों में हथियार, रुपया और मादक पदार्थों को पहूंचाने वाले दोषी कौन ?
By RAJESH GUPTA (ADVOCATE)
भारतीय कानून के अनुसार कोई भी अपराध में वांक्षित कोई व्यक्ति या अपराधी को जब पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जाता है तो गिरफ्तारी के 24 घंटों के अन्दर उसे न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है, जहाँ उस अपराधी का न्यायालय में न्यायिक रिमांड न्यायालय द्वारा बनाकर उसे न्यायिक अभिरक्षा में लेकर कारागार में निरूद्ध किये जाने का आदेश निर्गत किया जाता है। जैसे ही व्यक्ति न्यायिक अभिरक्षा में चला जाता है तो अपरोक्ष रूप से वह व्यक्ति राज्य की सम्पत्ति माना जाता है। उसका चिकित्सीय देखभाल, खाना पीना, विधिक परामर्श, सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकार की हो जाती है।
कभी कभी अपराधी उपरोक्त परिक्रियाओं का दुरुपयोग करने लगते है और जेल प्रशासन के कुछ भ्रष्ट नौकरशाहों को अनैतिक लाभ देकर सुविधा का भोग कारागार में तो करते ही है साथ ही साथ अपराध का अपराधिक संचालन व व्यवस्था जेल से ही चलाने लगते है।
अब हम चलते हैं सन 2002 की ओर जब पूर्वांचल में अपराधियों का मनोबल और आतंक अपने चरम सीमा पर व्याप्त था। सरेआम व्यापारियों की हत्या, रंगदारी, गैंगवार से दहशत का माहौल बना हुआ था। उसी दौरान अपराधियों ने जेलक्रमियों के सहयोग से दिनदहाड़े जिला कारागार, वाराणसी में नगर निगम के पार्षद वंशी यादव को जेल के मुख्य फाटक पर बुलाकर गोली मारकर सरेआम उसकी हत्या कर दी। मगर शासन और प्रशासन द्वारा जेलक्रमियों के विरुद्ध कोई गंभीर विभागीय कार्यवाही नहीं किये। जिससे कर्मचारियों का मनोबल जहाँ लचर होना चाहिए था, वही उनका मनोबल काफी बढ गया कि हमारा कोई कर ही क्या लेगा।
जिसका परिणाम यह हुआ कि कुछ ही वर्षों बाद सेन्ट्रल जेल में निरूद्ध कुख्यात अनुराग त्रिपाठी उर्फ अन्नू को जेल के अंदर ही सुबह के पहर जेल में निरुद्ध एक अन्य अपराधी द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी जाती है। मगर यहाँ भी वही कृत्य कुछ अधिकारियों का स्थानांतरण और कुछ माह बाद सम्पूर्ण जांच प्रक्रिया ठंडे बस्ते में बंद हो जाता है।
सवाल यह उठता है कि जब कैदियों को न्यायालय में पेशी के लिए ले जाया जाता है और जब पेशी के बाद वापस कारागार लाया जाता है तो उनका व्यापक चेकिंग होता है। जिससे कोई भी अनावश्यक वस्तु जेल में प्रवेश नहीं हो पाता है।
कुछ घटनाएं कभी-भी घट सकती हैं। कई बार तो आश्चर्य होता है कि वे अभी तक घटी क्यों नहीं? माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी अभी क्यों मारा गया, वह तो कभी-भी मारा जा सकता था। उत्तर प्रदेश की जेलों के जो हालात हैं, उनमें तो कोई-भी कभी-भी मारा जा सकता है।
अमूमन बड़े अपराधी जेलों में अपने आराम और सुरक्षा का इंतजाम वहां उपलब्ध बंदियों में से ही कर लेते हैं, पर मुन्ना बजरंगी को सुविधाएं हासिल करने का यह मौका नहीं मिला, क्योंकि बागपत जेल में वह जिस दिन पहुंचा, उसकी अगली सुबह ही उसका काम तमाम कर दिया गया। अदालत की जिस पेशी पर उसे लाया गया था, वह उसे झांसी जेल से लाकर बागपत जेल में मारा गया।
जेलों में व्याप्त भ्रष्टाचार के अलावा जेल कर्मियों का असुरक्षित जीवन भी वहां मौजूद बड़े अपराधियों के दबदबे का कारण है। हर साल हम कुछ जेल अधिकारियों की हत्या या उनपर हमलों की खबरें पढ़ते रहते हैं।
उत्तर प्रदेश में कुख्यात मुन्ना बजरंगी की जेल में हुयी हत्या के बाबत सी.बी.आई. जांच माननीय उच्चन्यायालय के आदेश पर हो रहा है बावजूद जेल प्रशासन व जेलक्रमियों के अंदर न तो कोई भय है और न ही कोई डर मनमाना तो इतना की भगवान ही मालिक जिसका परिणाम पुनः चित्रकूट जेल जैसी घटना का घटित हो जाना हम सबके सामने के विचारणीय प्रश्न खडा हो जाता है कि आखिर जेलों के अंदर अत्याधुनिक हथियारों का जमावड़ा कैसे और किनके द्वारा किया जाता है जो मोस्टवांटेड अपराधियों के पास मौजूद रहता है।
मेरा उद्देश्य किसी भी अपराधियों को महिमामंडित करने मात्र का नहीं है बल्कि हमारा उद्देश्य है कि राष्ट्र की सम्प्रभुता के साथ कोई खेलवाड़ करने का दुस्साहस न करें चाहे वह प्रशासनिक अधिकारी हो अथवा वह हार्डकोर अपराधी ।
मार्च 2020 से लगातार अब तक सूबे के समस्त जेलों में कैदियों से मिलाई व मुलाकात कोरोना संक्रमण के कारण बंद है तो जब मुलाकात बंद है तो जेल के अंदर किस प्रकार से हथियार पहूंची, यह एक अहम और विचारणीय प्रश्न शासन और प्रशासन के लिए होना चाहिए। आखिर चित्रकूट जेल में हुए दुसाहसिक हत्याकांड का जिम्मेदार कौन ?
उत्तरप्रदेश में चित्रकूट जिला कारागार हाई सिक्योरिटी वाली जेल है जहाँ अति मोस्ट वांटेड डकैत और अपराधी निरुद्ध है और उस जेल में निरुद्ध अपराधी अंशु दीक्षित द्वारा सरेआम न्यायिक अभिरक्षा में बंद अपराधियों मेराज और मुकीम काला की हत्या किया जाना और उपरोक्त हत्याकांड का राज दफन हो जाये एक षडयंत्र के द्वारा अंशु दीक्षित का भी इन्काउन्टर कर देना कही से भी न्यायिक प्रक्रिया में विश्वसनीय तथ्य नहीं हैं।
अब जरूरत है राज्य सरकार की सरकार की विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए जेलों में व्याप्त अपराध और भ्रष्टाचार को रोकने तथा इसमें परोक्ष अथवा अपरोक्ष रुप से संलिप्त जेलक्रमियों के विरुद्ध दण्डात्मक कार्यवाही किये जाने की जरूरत है।
जेल सूत्रों के अनुसार चित्रकूट जिला कारागार आधुनिक तकनीकी से बनी हाई सिक्योरिटी वाला जेल है। जहाँ बुन्देलखण्ड के नामी गिरामी कुख्यात डकैत और हार्डकोर अपराधी निरुद्ध हैं। वावजूद उपरोक्त जेल में प्रतिवंधित बोर का असलहा मिलना, गोली चलना, हत्या होना और फायरिंग में इनकाउंटर होना कारागार प्रशासन के साथ ही साथ सूबे की सरकार के उपर एक सवालिया निशान खडा करता है।
अपराधी हमेशा समाज के लिए अभिशाप होते हैं मगर हार्डकोर अपराधियों के सफाये के लिए जो खेल उत्तर प्रदेश में शुरु किया गया है। उससे निश्चित रुप से एक नयी परम्परा के साथ ही साथ न्याय के उद्देश्य को विफल करने का समुचित प्रयास और कृत्य है। जिससे न्यायिक प्रणाली प्रभावित होता है।
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