✍️दाम्पत्य को एकजुट करने में महिला प्रकोष्ठ की सराहनीय कार्य

 

वाराणसी: पति-पत्नी के बीच घरेलू विवाद इन दिनों काफी तेजी से बढ़ा है। मामूली विवाद में रिश्तों के टूटने का सिलसिला तेजी से जारी है। दाम्पत्य जीवन में हुए विवादों में नौबत तलाक तक पहुंची आती हैं। वह किसी भी सूरत में एक-दूसरे के साथ रहने को तैयार नहीं रहते। कारण शक, गलतफहमियां और संवादहीनता रिश्तों में आयी दरार को और भी बढ़ा देते हैं। परिवार के टूटने तक की नौबत आ जाती है। ऐसे में पारिवारिक समस्या को लेकर शिकायती पत्र आय दिन थानों पर दिया जाता हैं। ऐसे में महिला सहायता प्रकोष्ठ द्वारा परिवारों को फिर से आमने-सामने बैठाकर उनकी गलतफहमियों को दूरकर महज कांउसलिंग के जरिए फिर से रिश्ते की डोर को मजबूती देने में जुटा है। कुछ दाम्पत्य जीवन में विवादों से त्रस्त अधिकतर महिलाएं शिकायत लेकर महिला सहायता प्रकोष्ठ पहुंचती हैं। दुल्लीगड़ही थाना कोतवाली की रहने वाली एक महिला अपने पति के खिलाफ शिकायत की थी। महिला प्रकोष्ठ द्वारा पति को बुलाकर दोनों पक्षों को जब आमने-सामने बैठाया गया तो पता चला कि मामूली विवाद में नाराज होकर वह महिला शिकायत की थी। प्रकोष्ठ ने महिला के पति को बुलाया और कॉउंसिलिंग के जरिए समझौता कराकर दोनों पक्षों को उन्हें घर भेज दिया।

👉महिला सहायता प्रकोष्ठ की प्रभारी गीता भारती बताती हैं कि अमूमन हर रोज ही महिलाएं पारिवारिक विवादों को लेकर आती हैं। इनमें कुछ विवाद तो सीधे पति-पत्नी के बीच के होते हैं जबकि अधिकतर परिवार वालों द्वारा लगाये गये आरोप-प्रत्यारोप के चलते विकराल रूप ले चुके होते है। कुछ मामले शक या गलतफहमियों के चलते भी इस कदर बिगड़ चुके होते हैं कि परिवार बिखरने की स्थिति में होता है। महिला प्रकोष्ठ प्रभारी गीता भारती बताती हैं कि शिकायत मिलने के बाद हमारा पहला प्रयास होता है कि मामले का निस्तारण आपसी सहमति से हो जाए। इसके लिए हम दोनों पक्षों को एक साथ बैठाते हैं । दोनों पक्षों की बातों को सुनने के बाद उनकी समस्या के समाधान का रास्ता उन्हें सुझाया जाता है। कांउसलिंग का यह नतीजा होता है कि अधिकतर मामलों में दोनों पक्ष सुलह-समझौते के लिए राजी हो जाते हैं और परिवार टूटने से बच जाता है। जब समझौते की सभी कोशिशें नाकाम हो जाती हैं तभी हम ऐसे मामलों में मुकदमा दर्ज कराते हैं। ऐसे भी मामले रहे जिसमें शिकायतकर्ता शिकायत करने के बाद दोबारा नहीं आयी अथवा उसने कार्रवाई न करने की इच्छा जतायी। महिला सहायता प्रकोष्ठ की जिम्मेदारी केवल समझौता कराने तक ही सीमित नहीं है। वह समझौता करने वाली महिला के लिए ‘गार्जियन’ की भूमिका भी निभा रहा है। इसके लिए प्रकोष्ठ ‘फीडबैक’ का भी नुस्खा आजमा रहा है। महिला सहायता प्रकोष्ठ की प्रभारी बताती हैं कि समझौते के बाद प्रकोष्ठ के लोग ऐसे सम्बन्धित परिवारों का फीडबैक भी लेते रहते हैं । शिकायत करने वाली महिला को भविष्य में कोई दिक्कत न हो इसका पूरा ध्यान रखा जाता है।

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