✍️ Story of Bhimrao Ambedkar
आज बात करेंगे एक महान व्यक्ति के विषय में, सन 1891 में रत्नागिरी नामक स्थान महाराष्ट्र के वह भूमि जहां जन्म हुआ किसका? एक Profound Powerful दलित लीडर का, एक ऐसे शक्तिशाली पॉलिटिशन, Women Emancipator, एक Economist, एक Prolific Writer, एक Theorist, एक ऐसे महान व्यक्ति जो कि Buddhist का Revivalist था | Human Rights Profounder, Eminent Scholar, Razor Sharp Intelligence. नाम था इनका बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर (Dr Bhimrao Ramji Ambedkar) छोटी उम्र में ही ये रत्नागिरी से सातारा नाम के स्थान महाराष्ट्र के अंदर जो पुणे के नजदीक है यहां शिफ्ट हो गए, क्योंकि इनकी माता का देहांत छोटी उम्र में हो गई | बचपन से ही बड़ी दिल को दहला देने वाली, दुखी कर देने वाली, एक बच्चे को आतंकित पीड़ित कर देने वाली, तंग करने वाली, परेशान करने वाली कठिनाइयों के दौर से गुजरे | छोटे थे पढ़ना चाहते थे अपने पिता से बहुत रिक्वेस्ट करते थे, लेकिन क्योंकि दलित समाज में एक महार जाति में इनका जन्म हुआ तो कोई इनको पढ़ने की सुविधा नहीं दि | वहां पर आम बच्चों के साथ इनको पढ़ने नहीं दिया जाता था | पिता ने इनको बड़ी जुगाड़ लगा कर के वहां के किसी स्कूल में एडमिशन करवाया, तो उसको बैठने नहीं दिया जाता | टीचर बोलते थे कि “यह बाहर बैठकर पढेगा” सोचो छोटा बच्चा उसको बाहर बैठाकर पढ़ाया गया, उसको पढ़ाई में थी इतनी रुचि की बाहर बैठकर इतना ध्यान से पढ़ता था की,
एक बार मास्टर ने इनको बोला “इधर आओ ब्लैक बोर्ड पर सवाल कोसॉल्व करके दिखाओ” वाह ब्लैक बोर्ड पर सवाल सॉल्व करने गया, अचानक सभी बच्चे चीलाएं “मास्टर जी यह नीची जाति का है” और इतना ही नहीं बच्चे चिल्लाकर भागने लगे ब्लैकबोर्ड की तरफ, ये हैरान हुआ, क्यों भागे? तभी देखा सारे बच्चे अपने-अपने टिफिन उठाएं और उठाकर पीछे करने लगे धक्का मारने लगे क्यों? उनको डर था इसकी परछाई से इनका खाना अपवित्र ना हो जाए !
ऐसे कई चोटे-धक्के इसको लगी, पानी एक बार कूड़े से क्या पी लिया इतनी मार पड़ी, एक छोटे बच्चे को सहनी पड़ी |
एक बार रिक्शेवाले ने रिक्शा से उतार दिया, बोला “ तू नहीं बैठेगा रिक्शे पर” क्योंकि रिक्शेवाले को बीच में पता लगा कि यह नीची जाति का है, और उसके बाद उसने बोला कि “तुमसे डबल पैसा लूंगा, और रिक्शा भी अब चलाएगा तू चलाएगा” वह नीचे चलने लगा |से ना मिल पाने के कारण उनकी मृत्यु होती चले गए, 4 बच्चों का देहांत हुआ, एक बच्चा बच गया लेकिन पत्नी भी आगे चल कर लंबा साथ नहीं दे पाई उनका भी लंबी बीमारी के चलते देहांत हो गया | बाबासाहेब आंबेडकर, अब इस समय कोई भी आदमी टूट सकता था जिसका अपना स्वाभिमान ही खत्म हो जाए, लेकिन ये क्या किए, ये साथ-साथ अपने देश के लिए लड़ते रहे और घर के तकलीफों से अपने आपको रुकने नहीं दिया | सत्याग्रह पर निकल गए, 1927 के महान सत्याग्रह में ये जिद पर अड़ गए, की “सब दलितों को कुआं से पानी पीने का अधिकार दिला कर रहूंगा, यह एक सार्वजनिक स्थान है किसी का प्राइवेट नहीं है, जो सरकारी स्थान है वहां पर एक इंसान दूसरे इंसान के साथ पानी क्यों नहीं पी सकता?” देखिए गलत तो एक्चुअली हो रहा था, जो दलित औरतें थी न उनको साड़ी उठाकर पहनने पड़ती थी, उन्होंने पहली बार पाऊं को ढक के साड़ी पहनने का अधिकार दिलाया ।
उसके बाद कम्युनल इलेक्ट्रोरेट की मांग कर दि इन्होंने, कम्युनल इलेक्ट्रोरेट में ये चाहते थे की कम्युनिटी के आधार पर “हमारी वोटिंग की सुविधा अलग हो” उसमें थोड़ा गांधीजी अड़ गए क्योंकि गांधीजी जानते थे कि “अंग्रेज लोग मिलकर के हमारे हमारी सारी जातियों को तोड़ कर अलग कराना चाहते थे” गांधीजी ने इनको समझाया गांधीजी बोले की “अंबेडकर जी मैं तुम्हें रिजर्वेशन दिला दूंगा मैं आपको बाकी सब मदद करूंगा सब करूंगा लेकिन अलग नहीं करते अब जातियों के आधार पर देश को अलग क्या तुम मुझे स्वतंत्रता नहीं मिल पाएगी, मैं अंग्रेजों से नहीं लड़ पाऊंगा मेरे साथ रहकर मेरी ताकत बनो” ओ जब अंबेडकर जी नहीं माने तो गांधीजी ने फिर उनको रिक्वेस्ट की, और उसके बाद अनशन पर बैठ गए गांधीजी, अंबेडकर उस समय दुविधा में पड़ गए ओ सोचे “एक तरफ मेरी अपनी जाति के लोग मैं उनकी मदद करूं और एक तरफ देश में आंदोलन लड़ रहे हैं गांधी उनका जीवन इनके जीवन का त्याग ना हो जाए कहीं ऐसा जीवन खत्म ना हो जाए” उन्होंने गांधीजी को समझाएं आप अपना अनशन छोड़िए पूना पैक्ट वहां साइन किया गया और पूना पैक्ट जब साइन किया उस समय इन्होंने अब रिजर्वेशन तो कम से कम अपने कंट्रोल में कर लिया | The Evolurion of provincial Finance in British India और The Problem of The Rupee नाम की इन की दो किताबें जिसके आधार पर RBI की स्थापना हुई | कैन यू इमेजिन भारत के सबसे निचले पायदान से आया एक यंग लड़का जिसकी कोई मदद करने वाला नहीं था आज उसकी बुद्धि पर आधारित हमारे कॉन्स्टिट्यूशन की स्थापना की गई | इनकी ज्ञान बुद्धि और कौशल का लोहा इंडियन लीडर और ब्रिटिश लीडर दोनों मानते थे |
1947 में भारत आजाद हुआ और गांधीजी के पास नेहरू अपनी पूरी कैबिनेट की लिस्ट लेकर आएं, जब नेहरू जो स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बनने वाले थे पूरी कैबिनेट की लिस्ट लेकर पहुंचे और बताया की देखिए इनको मैं अपनी कैबिनेट में रखा हूं अभी गांधी ने पूछा “इसके अंदर बाबा साहब अंबेडकर का नाम कहां? “ और वही थोड़ी उनकी बहस हुई और गांधी ने बोला कि “नेहरू ये तुम्हारी कैबिनेट नहीं है यह आजाद भारत की कैबिनेट है” तभी भीमराव अंबेडकर को कानून मंत्री के रूप में लिया गया और न केवल कानून मंत्री बल्कि तुरंत जो ड्राफ्टिंग कमिटी थी इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन की उसका चेयरमैन भी बना दिया गया | इनके Intelligence के सामने कोई बोल नहीं सकता था, जो इन से सहमत थे और जो उनसे असहमत थे वे सभी जाते थे कि इनके पास बुद्धि बहुत है बहुत है! ये ये इतने बुद्धिमान व्यक्ति आगे चलकर इन्होंने हिंदू कोड बिल और महिलाओं के लिए बने कानूनों के अंदर कई बदलाव लाए ये ओ पॉलीटिकल लीडर नहीं थे जो सत्ता के लिए लड़ते थे यह लड़ते थे उनके लिए कि “देश में कमजोर हिस्से को उठाना, देश के हर लीडर की जिम्मेदारी है चाहे वह महिलाएं हो या एक जाति धर्म के आधार पर ओ कमजोर हिस्से को आगे बढ़ाना सपोर्ट करना, तभी देश आगे चलेगा खुशहाली आएगी तो फायदा सबका होगा”
इनकी भाषा में, भाषण में, चर्चा में, आचरण में, इनकी किताबों में, और ड्राफ्टिंग कमिटी में चेयरमैन होते वक्त कॉन्स्टिट्यूशन को लिखने में सहनशीलता लगातार देखती रही | अहिंसा परमो धर्मा: बौद्ध धर्म को अपनाने लगे “आत्मावत सर्वभूतेषु सभी जीव आत्माओं को अपनी तरह देखना चाहिए” ये जो समान दृष्टि देने का प्रयास किया ये उसके बाद यह बौद्ध धर्म को स्वीकार करने चले गए आखिरी तक काम प्रेम से करते रहे किसी से लड़ाई नहीं लड़ी |
अगर आप यहां तक पढ़ चुके हो तो यह संदेश लेकर जाइए की Education Is The Tool, पूरी जिंदगी में सबसे निचली कमजोर जाति को इन्होंने एजुकेशन के बल पर तो खड़ा किया ये लगातार जो पढ़ते रहे लॉगिन के सामने इनके एजुकेशन के चलते चुप हो जाते थे | कोलंबिया यूनिवर्सिटी आगे चलकर इनको No.1 Scholar in The World की उपाधि से नवाजा गया, देश ने इनको भारत रत्न दिया | एक बात समझ लीजिए “इनके बराबर लीडर पृथ्वी में गिनती के होते हैं परसेंटेज में नहीं होते”
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