✍️ अधिवक्ताओं के मांग और हड़ताल का सरकार पर कोई असर नहीं
वाराणसी: अधिवक्ता अपनी मांगों को लेकर कभी कभार आंदोलित होता है। लेकिन वर्तमान में देखा जाए तो वाराणसी न्यायालय को स्थानांतरण करने की शोर जोरो पर है। यह जिन्न जानकारी के अनुसार 2017 से ही उफान मचाए है,थोड़ी बहुत कसर दैनिक अखबारों में खबर छपने के बाद पूरी हो जाती है, जिसे पढ़कर अधिवक्ता अपनी मांगों को रखने के लिए आंदोलन भी कर चूके है। शासन प्रशासन से भी इस मामले में जवाब अस्पष्ट था। अभी मामला शांत ही था की कुछ दिन पहले ग्रामीण न्यायालय का मुद्दा उठा, फिर नेतागिरी बोलिए या अधिवक्ता हित की बात करने वाले एक दिन फिर परिसर में नारेबाजी करने लगे, लेकिन हुआ कुछ नही। राजनीति के इस दौर में कौन अपना है कौन पराया यह कहना मुश्किल है। लेकिन आश्चर्य तब होता है जब यूपी काउंसिल के चार मेंबर बनारस के हैं,जिनके द्वारा अधिवक्ता हित की कोई पहल ऊंचे स्तर पर लिखित रूप से या मीटिंग के दौरान कही रखी भी गई है या नही हम इस बात की पुष्टि नहीं करते। बीसीआई भी कुछ मामलों में मौन धारण किए हुए हैं। हालाकि मैं भी इसी संस्था से जुड़ा हू कहने में अच्छा तो लगता नही लेकिन 2024 बार काउंसिल का चुनाव भी आ गया है। देखते हैं चुनाव के पहले क्या वादे किए जाते है और बाद में क्या कार्य किए जाते है। अधिवक्ता हित की बात करने वाले नुमाइंदे जो सरकार तक अपनी पहुंच बताते रहते हैं, अधिवक्ता की समस्या पर कितनी बाते कही और की ये सबको पता ही होगा। वर्तमान सरकार में यही वाराणसी के अधिवक्ता विधायक भी है लेकिन लफ्जो के अलावा उनके पास अधिवक्ता हित के कार्य कराने तक की जोहमत नही दिखी। बात की जाए कार्य की तो वाटर कूलर तक ही कार्य सुनने में आता है,पता नहीं वो भी इन मानहितो द्वारा है या चंदा या संस्था द्वारा जिसको सिर्फ नाम पर फीता काटा गया ये भी हम पुष्टि नहीं करते। युवा अधिवक्ता जिस तरह आगे बढ़ रहे हैं, काबिले तारीफ़ है। छोटे बड़े मिसलेनियस कार्यों से जिनकी स्टार्टअप थी उसको भी सरकार द्वारा न्यायालय को अन्यत्र ले जाकर बाट दिया गया। अधिवक्ता किसी दूसरे व्यक्ति के स्थान पर या उसके तरफ से दलील प्रस्तुत करता है इसका प्रयोग मुक्त कानून के संदर्भ में होता है प्रायः अधिकांश लोगो के पास अपनी बात को प्रभावी ढंग से कहने की क्षमता ज्ञान कौशल या भाषा शक्ति नहीं होती। अधिवक्ता की जरूरत इसी बात को रेखांकित करता है लेकिन जब अधिवक्ता के हक और समस्या की बात की जाती है तो सरकार द्वारा कहे गए किसी भी बातो का अमली जामा जमीनी हकीकत के ठीक विपरित होता है। चुनावो के दोरान बड़ी- बड़ी दावा कर अधिवक्ता के हक के प्रति अनेको लुभावने दावे किये जाते रहे है परन्तु लूभावने बाते सिर्फ मौखिक होते है जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नही होता है। अगर बात की जाये तो हाल ही में कुछ वर्ष पहले वाराणसी कचहरी को संदहा स्थानांतरित करने की खबर छपी थी जिस को लेकर स्थानीय अधिवक्ता ने विरोध प्रदर्शन भी किया था। जिस पर मामला प्रशासन के पास पहुँचने पर मामले को दबा दिया गया।बता दे की इसके पूर्व छोटे मोटे कार्य जैसे 107/116/151 और तमाम कार्यो को स्थानीय न्यायालय से दूरस्थ कर अधिवक्ता के कार्यो व एकता को खंडित करने की मनसा की जाती रही और की गई है। ताजा में ग्रामीण न्यायालय बनाकर। अधिवक्ताओं के विरोध प्रदर्शन का सरकार पर कोई असर न पड़ा है ना भविष्य में पड़ेगा। वाराणसी कचहरी के इर्द- गिर्द तमाम खाली जगह है। कचहरी परिसर मे भी जगह पर्याप्त मात्रा में है जहाँ पर मल्टी बिल्डिग् का निर्माण कर नीचे चैंबर व ऊपर न्यायालय व ऑफिस का विस्तारीकरण किया जा सकता है। लेकिन अधिवक्ताओं को बाटने के लिए यदि पहले से ही मनसा और भूमिका बनाई जा चुकी है तो इसमें कुछ किया ही नहीं जा सकता है।
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