✍️ हे राम! कितना बदल गया इंसान?
वाराणसी: आधुनिक युग में क्या जमाना आ गया है,आज के युग में लोग कितने बदल गए, हर एक इंसान बदल गया है। पति-पत्नी के रिश्ते बदल गया, बाप बेटे का रिश्ता बदल गया और भाई बहन का रिश्ता बदल गया,दोस्त -दोस्ती के लिए बदल गया,प्रेमी प्रेमिका के लिए बदल गया। हर रिश्ता और हर इंसान इस कल युग मे बदलता नजर आ रहा है।
शिष्टाचार व नैतिकता तो अब बीती बात हो गयी। शायद कहीं किताबों में दिख जाय परन्तु मानवीय व्यवहार में अब उसके अंश मौजूद नहीं है। नए सदी का मानव है, चाँद और मंगल पर अपना आशियाना तलाश रहा है पर अपनी धरा पर इस मानव के कृत्य तो देखो – सिर शर्म से झुक जायेगा। एक तरफ हम काली, दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी के रूप में स्त्रियों का पूजन करते हैं तो दूसरी तरफ उनके तन पर भी गन्दी नज़र रखते हैं। अपनी संस्कृति की दुहाई देने वाला ये भारतवर्ष जहाँ रोज एक स्त्री की आबरू लूटी जाती है वो भी 21वीं सदी में रहने वाले खुद को पढ़े लिखे कहने वाले मानवों के द्वारा। काश की उनकी भूख यहीं मिट जाती पर वहशी नजरें तो 4 साल की बच्ची में भी जिस्म लताश लेतीं हैं। क्या ये मानव नन्हें बच्चों को भी अपना शिकार बनाता रहेगा या फिर कुछ सुधार की गुंजाईश है। हाल ही में तमाम ऐसे घटना घटित हुई है जिसमे इन्सान दरिदंगी को भी पार कर गया है। रोज समाचारों में लड़की के मारे काटे जाने की खबर मिलती रहती है। जब यही करना होता है तब प्यार का दिखावा और छलावा क्यों? कुछ चंद चिंदीचोरो से सारा समाज बदनाम होता नजर आ रहा है। किसपर विश्वास किया जाए किस पर नही,अब तो यकीन करना और पहचानना भी मुस्कील सा हो गया है। लड़किया चमक धमक की ख्वाब में बेफरवाह दूसरे पर झूठे प्यार पर यकीन कर अपने घर से ही बगावत पर उतर आती है जिसका फलस्वरूप हाल के समाचारों में दिखा।
भारत देश जहाँ वृद्धाश्रमों की संख्या में प्रतिदिन इजाफ़ा होता जा रहा है। क्या यही शिष्टाचार है ? कौन सी पीढ़ी है ये ? क्या यही 21वीं सदी का ज्ञान है ? एक दौर ऐसा भी था जब एक व्यक्ति के पास रहने को पक्का मकान नहीं था, कमाने का उचित साधन नहीं था, जीवन कृषि पर आधारित था, रोग और पीड़ा का निदान नहीं था, आवश्यकताओं को पूरा करने का साजो सामान नहीं था ऐसे
व्यक्ति के पास रहने को पक्का मकान नहीं था, कमाने का उचित साधन नहीं था, जीवन कृषि पर आधारित था, रोग और पीड़ा का निदान नहीं था, आवश्यकताओं को पूरा करने का साजो सामान नहीं था ऐसे विषम परिस्थितियों में भी उस दौर की पीढ़ी नें अपने माता पिता का साथ नहीं छोड़ा। परन्तु आज – पक्का मकान है , हर साजो सामान है फिर भी 21वीं सदी का बेटा बेईमान है।
बात केवल बेटों की नहीं है बेटियों नें भी सीमाओं को पार कर दिया है, अपने घर व माता पिता से ज्यादा किसी और से दिल जोड़ लिया है। एक दौर था जब बहू बेटी को घर से बाहर निकल कुछ करने का अवसर प्राप्त नहीं था, किन्तु पुरुष समाज नें अपने विचार बदले और यह तय किया की बेटी पढ़ाओ – बेटी बचाओ, यदि हो सके तो इनको अपने पैरों पर खड़ा कर जाओ। बहुत ज्यादा तो नहीं पर आज लड़कियां पढ़ रहीं हैं ,नौकरी कर अपना भरण पोषण कर रहीं हैं पर एक गलती वो आज कर रहीं हैं की जिसने उनको अतीत के दलदल से निकाल आगे बढ़ने का मौका दिया। उसे बदले में सब नहीं तो कुछ बेटियों ने बहुत धोखा दिया। अक्सर ऐसी घटना सुन दिल दहल जाता है जब बेटी का प्यार बाप के गले पर वार कर जाता है। किसी ने शाजिश से मारा, किसी नें छत से धक्का दे दिया, किसी नें किसी से क़त्ल करवा दिया। क्या यही नए सदी के बेटी है ? क्या यही नए सदी का प्यार है ? अपनी आज़ादी की मांग करने वाली लड़कियां यह ध्यान दें की आज़ादी जीने का नाम है खून बहाने का नहीं।
पैसा ,व्यापार और बाजार; बस यही है नए सदी का सार। पेट में भूख है पर पैसा नहीं तो फिर मर जा, यहाँ कोई सेठ ऐसा नहीं जो तुझे खाना दे। हिन्दुस्तान जहाँ कभी दान में भी लोग दाल चावल दे दिया करते थे आज वे बेहद कंगाल हैं। खूब मनाई आज़ादी हमने की देश के लोगों का पेट भी न भर सके और खुद को कृषि राष्ट्र बताते हैं। आज़ादी के बाद अब तक कुल 18 प्रधानमंत्री हमने बदल डाले पर भूख और ग़रीबी अब तक न बदली जा सकी। इस युग में जिसे सिर्फ पैसा और व्यापार दिखाई देता है किसी का दर्द नहीं। सुनने में आ रहा है की 2050 तक भारत विश्व की महाशक्ति के रूप में उभरेगा। गौरव होता है ऐसी बातें सुनकर किन्तु यह गौरव और दोगुना बढ़ जायेगा जब हिन्दुस्तान महाशक्ति होने के अतिरिक्त महासंपन्न भी कहलायेगा। यह गलत नहीं है की भारत आर्थिक मोर्चे पर आगे बढ़ा है पर सामाजिक ढांचा पहले के मुकाबले अब ज्यादा गिरा है। अगर देश में भूख ग़रीबी अपराध अधर्म यूँही मुँह फैलाते रहे तो महाशक्ति बनना तो महज एक ख्वाब होगा, देश में हर जगह अपराध होगा।
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