✍️ किस एकता की बात करते हो ?
वाराणसी: एकता के नाम पर हर कोई व्यक्ति की अपनी अपनी राय है। लेकिन मेरा मानना है की समाज में 80 प्रतिशत लोग अपने घर परिवार के बाहर ही एकता का मार्ग दिखाने में लगे रहते हैं। ये समाज के ऐसे लोग होते जो समाज में कम समय में खुद को इस बल पर चर्चित होने की लालसा रखते है। अगर बात की जाए धर्म, जाति, राजनीति की तो अधिकतर लोग इन मुद्दों को लेकर ज्यादातर एकजुट बनाकर एकता की बात करते रहते है। खुद के घर परिवार में एकता न हो लेकिन समाज में एकता का पाठ ऐसे पढ़ते और पढ़ाते हैं जैसे इन्होने इस शब्द पर पीएचडी कर रखी हो। राजनिती में धर्म के नाम पर लड़ना और लड़ाना,कभी जाति के नाम पर लड़ना और लड़ाना । क्या इसी को एकता कहते हैं।
👉बड़े दुख की बात है "भारतीय एकता" शीर्षक न होकर इनको जाति, राजनीति और धर्म की एकता प्रमुख लगती है। व्यवसाय भी इससे अछूता नहीं रह गया। हर विभाग में एक यूनियन बनी है। यहां इंसानियत नही देखी जाती,बस सामने वाला कितना भी गलत क्यों न हो अगर वो उनके विभाग का हो तो उसको बचाने का पुरा प्रयास उन्ही के विभाग वालो द्वारा किया जाता है। यहां इन्सान ही इन्सान का दुश्मन है और इन्सान ही जाति,राजनीति,धर्म के नाम का पाठ पढ़ाने में लगा रहता है। चुनाव आते ही एकता खत्म हो जाती है तब पार्टी से ज्यादा जाति और धर्म के आधार पर अंदरूनी रूप से वोटिंग की और कराई जाती हैं। यहां पैसों से लोगो को तौला जाता है। समाज में इन्सान के इंसानियत से ज्यादा पैसे की कीमत है। जिसके पास पैसे है,उसके पास सब कुछ है। वही पैसा "एकता" को भी बढ़ावा दे सकता है और एकता को विघटित भी कर सकता है। किसी भी संगठन को चलाने के लिए पैसे का होना बहुत जरुरी सा हो गया है।
👉अगर सच बोला जाए तो "एकता" के नाम पर लोग अपनी रोटी सेंकने में लगे है। "एकता" के नाम पर लूट खसोट मची है।
'एकता' और 'भाईचारा' किसी प्रगतिशील समाज की मूलभूत ज़रूरत है। लेकिन सामाज विभिन्न जातियों और समुदायों में बंटा हुआ है, कई बार ये वजहें कड़वाहट पैदा करती हैं। ऐसी स्थितियों में ही सजग रहने की ज़रूरत होती है। शायरों ने ख़ूबसूरत अल्फ़ाज़ों से नवाजा है।
तू हिन्दु बनेगा ना मुसलमान बनेगा
इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा
- साहिर लुधियानवी
न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ
जो किसी के काम न आ सके मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ
- बहादुर शाह जफ़र
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा
- अल्लामा इक़बाल
सभी थे एकता के हक़ में...
सभी थे एकता के हक़ में लेकिन
सभी ने अपनी अपनी शर्त रख दी
- दीपक जैन दीप
हमारा ख़ून का रिश्ता है सरहदों का नहीं
हमारे ख़ून में गँगा भी चनाब भी है
- कँवल ज़ियाई
मुझ में थोड़ी सी जगह भी नहीं नफ़रत के लिए
मैं तो हर वक़्त मोहब्बत से भरा रहता हूँ
- मिर्ज़ा अतहर ज़िया
👉मेरे इस ✍️लेख को पढ़कर अपने विभाग के बारे में जिसमे एकता की बात की और कही जाती है, मंथन करे।
👉सच्चाई आपके मंथन से ही आपके आंखो के सामने प्रदर्शित होने लगेगी।
अच्छा लेखन
ReplyDelete