✍️ चंद पैसो के लिए बदल जाते हैं ईमान
✍️ आधुनिक युग में मानव को हो क्या गया है, चंद पैसे के लिए बदल देते है अपने ईमान। कोई विश्वास के साथ खेलता है तो कोई माशूमियत के साथ, कोई ईमानदार व्यक्ति के साथ तो कोई सच्चाई के साथ। इस अत्याधुनिक युग में आखिर हो क्या रहा है,जिसमे कुछ चंद लोगो के द्वारा चंद पैसे लेकर समाज के वसूलो को त्यागकर अपने ईमान को गिराकर रिश्ते-नाते आदि को बर्बाद कर दिया गया है। पैसे के आगे किसी के दुःख दर्द को समझा नही जा रहा, बल्कि उसकी मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा है। चंद कागज के टुकड़े को अहमियत देकर इज्जत और ईमान व धर्म को बेचा जा रहा है। इस युग के इंसानो को आखिर हो क्या गया है? जिसने सृष्टि रची उस भगवान को भी चंद पैसे के लिए बेच दिया जा रहा है। मंदिरों में भक्तो की लंबी कतारों की लाइन लगी है, परंतु कुछ पैसों के लिए अमीर व रसुकदारो को भगवान के दर्शन बीना कतारों से कराया जा रहा है। क्या भगवान भी पैसे से सभी के दुखो को सुनते और आशीर्वाद देते हैं? फिर क्यों और किसके लिए पैसे का चढ़ावा चढ़ाया जा रहा है। हमे बचपन से ही सिखाया जाता रहा है की देवियों के रूप में माँ, बहन,बेटी होती है। तीज त्योहारों में भी उस बेटियों की पूजा कि जाती है, लेकिन कुछ असामाजिक तत्व व खून के रिश्ते चंद पैसों के लिए माँ,बहन,बेटियों को भी बेचने मे कोई गुरेज करने से बाज नहीं आ रहे। समाज में शर्त लगाकर चंद पैसो के लिए लड़कियों से प्यार किया जाता है और इज्जत के साथ खेलकर उसे छोड़ दिया जाता है। कुछ ढोंगी अधर्मी लोग नौ देवीओ की पूजा करते है पैसें के लिए लड़कियों को बेच देते है और धर्म का ढोंग रचते हैं।
👉अब तो शिक्षा भी बिकने लगी,शिक्षा को भी पैसे से खरीदा जा रहा है। घर बैठे डिग्री हासिल कर ली जाती हैं। गरीबो के बच्चे पढ़ नही पा रहे है और अमीरो के बच्चे शिक्षा का मतलब समझ नहीं पा रहे है, फिर भी पैसे से डिग्री लेते जा रहे हैं। कॉलेजों में दाखिलों के समय भी दलाल बैठे हैं जो पैसे से आने वाली पीढ़ी के भविष्य को भी बेच रहे हैं।
👉अगर बात कि जाए पुलिस विभाग की तो किसी बड़ी घटना के घटित होने पर जब मामला आला अधिकारियो तक पहुँचती है तो तत्काल कार्यवाही की जाती है परंतु आम जनता के द्वारा किसी घटना की फरियाद ले जाने पर पहले टाल मटोल किया जाता है फिर दोनों पक्षों को बुला कर कुछ चंद विभागीय लोगो द्वारा एफआईआर लिखे या ना लिखे जाने के लिए पैसों की डिमांड की जाती है। किसी तरह मुकदमा दर्ज हो के बाद भी मुकदमे के विवेचक अधिकारी के स्वयं या दलालो के द्वार विवेचना के दौरान पक्ष विपक्ष से मिल कर चंद पैसे की डिमांड भी कर ली जाती है।
👉अगर बात कि जाए सरकारी संस्थानों के कर्मचारीयों की तो 90% लोग बीना घुस लिए कार्य नही करते, पैसे न मिलने पर कार्य को पेंडिंग कर देते हैं।
👉चिकित्सा विभाग का भी यही आलम है, जिसके पास पैसा है उसके लिए तत्काल बेड उपलब्ध जिसके पास नही वह वेटिंग में परेशान,कोरोना के दौरान कुछ अस्पताल तो मरीजों से मनमाना रकम तक वसूल लिए थे परन्तु अफसोस कि बात है यह सब न तो सरकार को दिखी न किसी उच्च अधिकारियो को।
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