✍️✍️ राज\रार के तकरार में फँसी हित की लड़ाई
एकता जिन्दाबाद का नारा कहने और हित की लड़ाई लड़ने वाले आपस में ही राज काठ के चक्कर मे तकरार कर बैठे। पद व कुर्सी के पूर्व यही लोग तरह तरह के वादे किया करते थे, पद पर आशिन होते ही इनके राग व ब्यवहार में बदलाव देखने को मिलने लगा। अब यही इंसान अपने समाज में भी जाति धर्म के चक्कर में काम से ज्यादा भेद भाव और गुटबाजी कर आधा समय ब्यतित कर बैठे हैं। भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है, लेकिन उसको सुधारने के बजाय समय ब्यतित कर खुद की रोटी मिलकर सेकी जा रही हैं, युवाओं को अच्छी सीख देने के बजाए समाज में अपने कृत्यों से गलत मैसेज पहुंचाने को आतुर है। आए दिन परिसर मे हो रही घटना पर इनकी नज़र नही जाती, बैठने की जगह तो है नही, परिसर में दुकान पर दुकान खुल रही, बिना पंजीकरण के लोग फेसबुक पर समाज (संस्था) का नाम लिख कर उल्टे सीधे मेसेज और कंमेंट करते, परिसर मे धड़ल्ले से घूमते आदि नही दिखती, बस दिखती है तो वर्चस्व की लड़ाई और कौन अपने जात का है भाई। गोपनीयता तो अब गोपनीय रही नही,जो आठ लोगो के मध्य होनी थी, आख़िर वह सार्वजनिक पटल पर कैसे हो रही प्रसारित। हित की बात की नही जाती, यदि की जाती है तो काम हो नही पाता, वादे तो बड़े बड़े होते है पर उसे अमल में लाया नहीं जाता। विरोध करने वाले को ही दबाब बनाकर दबा दिया जाता, जैसे तैसे पांच माह बीतने को है और आगामी कुछ माह कार्यकाल के बाकी है। अब देखना है की कितना हित में कार्य सम्पन्न किए और कराए जाते है।
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